Poem on life in hindi- जीवन पर कविता
जीवन अमूल्य है फिर भी कुछ सरफिरे इस स्वर्णिम जीवन को माटी के मूल्य जीते है उनको जीवन में आनंद, प्रेम, सामंजस्य जैसे चीजो से कोई मतलब नहीं होता है| इन्ही अंधकारमय जीवन को इन कविता के माध्यम से बताया गया है|
                     (१)  शीर्षक: अर्थहीन जीवन 
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| Poem on life | 
जब टूट जाता हों अंतर्मन,  
जैसे गिरे पौधे से सुमन, 
मन नीरस होता यदि नित दिन, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं |
यदि ना करता उपकार कभी, 
यदि ना देता सत्कार कभी, 
करता हों बस मन को दुःखी, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं|
यदि सत्य खोज की चाह नहीं, 
रहे कोई आधार नहीं, 
 रह जाता जो वही के वही, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं|
जो अक्सर कहते व्यस्त हूं मैं, 
वह व्यस्त नहीं अस्त-व्यस्त सदा, 
रहते जो अक्सर अपनों से जुदा, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं|
यदि रहे छिन्न भिन्न उसका चित, 
देता हों जगत हों मिथ, 
बदले की सूची रखता हो लिख, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं|
यदि बढे अनुचित में उसका हाथ, 
देता हों अहित का साथ, 
करता हो यदि पराघात, 
उस जीवन का कोई अर्थ नहीं|
Written by- शुभम तिवारी 
          (२)  शीर्षक: कुछ अनकहे सपने 
हालात भले ही नाज़ुक है,
हौसलों ने बना लिया ठिकाना है,
मुश्किल के वक्त भी हिम्मत से,
पूरा जोर लगाना है।
ताक लागये बैठे है जो,
उनकी आशा को सफल बनाना है,
हमको अपनी जिंदगी में,
अपना हर फर्ज निभाना है।
क्षणिक है ये दुख दर्द सभी,
रास्ते के पत्थर से नही घबराना है,
हम जैसे है बेहतर है,
बस खुद को साबित कर जाना है।
हम बैठे है उस दर पर जहाँ,
नजरो से घिरा ठिकाना है,
हमे परखने वालो को,
कुछ बन कर हमें दिखाना है।
आज नही है कुछ बढ़िया,
पर कल अच्छा हो ऐसा माना है,
थका नही हूँ अभी मैं,
मुझकों अपनी मंजिल तक जाना है।
खुदगर्ज मिले है कई मगर,
कांटो से बना रहे हैं डगर,
पाल रखे थे जो हमनें,
वो मिटा गए हमकों सबने।
कुछ न कह कर भी कह से गये,
वो दिखा गए ये नया जमाना है,
अपनो के लिए तो ठीक है ,
दुसरो को भी खुश कर जाना है।
ये उम्र बढ़ती जाती है,
बढ़ता रिश्तों का ताना बाना है,
एक साथ नही तो थोड़ा ही सही,
सबको साथ लिए बढ़ते जाना है।
हरा भरा हो घर मेरा,
मेरा देश बढ़े आगे हरदम,
कुछ हम कर ले कुछ तुम कर लो,
ऐसे मैं और तुम से हो जाये हम।
साथ निभाये हम सबका,
बाट ले हर दुखियों का हर गम,
छोटी छोटी खुशियों से,
इस आसमान में छा जाए हम।
इतिहास ने पहले हि दिखा रखा है,
संसार के नियम में समा रखा है,
कुछ न किया दुसरो के लिए,
सिर्फ अपना स्वार्थ छिपा रखा है।
मिला जुला इतिहास है ,  
बढ़ने वाले ही परिहास है,
सब कुछ पा लेंगे ये माना है,
जिंदगी जी लेंगे ये ठाना है।
रख द्वेष ईर्ष्या को दूर कही,
खुद को इतना निखार ले हम,
कुछ बिगड़े उसकी फ़िकर छोड़,
आओ आज ही खुद को सवाँर ले हम।
अपने देश की माटी, 
हर पहाड़ी का हर घाटी का,
बेख़बर हो कर क्यो सोना
अपनी ही सोच कर क्यो रोना,
मुस्कान बिखेरे हर जगह पर हम,
ख़ुशनुमा हो जाये मेरे देश का हर कोना।
written By- सूर्यदीप पाण्डेय  
शीर्षक - कहां है तू ऎ ज़िंदगी
तकदीर में है या तस्वीर में है,
लकीर में है या तासीर में है,
घुल कर मेरी हर सांस में,
है कही तु पास में,
ढूढ़ लूं तुझे जल्द ही,
पर क्यों और किस आस में,
तू हीरे में है कि सोने में है,
तू आनंद में है कि उचण्ड में,
तुन कण में है कि खंड में,
मेरे मन के भाव मे है की लगाव में,
तू उतार में है या चढ़ाव में है,
तू है भी या नही भी है,
ढूढता तुझे दरबदर,
तू है किस डगर में गुम,
गुमनाम सी ऐ जिदंगी।
                                   written By- सूर्यदीप पाण्डेय
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